Tuesday, August 31, 2010

अंतर्द्वंद (The battle of inner thoughts)

A sense of responsibility motivates us to do the right thing selflessly. The evolution of a young boy in a responsible person initiates a battle of thoughts inside the boy. During the battle, boy finds himself in a dilemma, where he is unable to decide the result of contradicting thoughts.


चल पड़ा था मैं जैसे झोंका,

वो मस्त पवन लहराती थी

उबड़ खाबड़ से पहाड़ों में,

लहरें भी कल - कल गाती थी



मंजिल की खबर डगर पता,

मिली राह जहाँ पग बढे वहीँ

मन में चिंता ना कोई व्यथा,

जो मैंने चुना वो ही था सही।



कितने सुहाने दिन थे वो,

भंवरा भी गुन - गुन गाता था।

निश्छल कोमल मन मंदिर में,

मानो बचपन हर्षाता था।



मैं आज घिरा कर्तव्यों से,

राहों पर बढ़ता जाता हूँ ।

मानो अपने कर्तव्यों से,

जीवन को गढ़ता जाता हूँ।



कर्म प्रथम सच जीवन का,

सच ही तो है यह गुरुवाणी।

कर्तव्य सृजन मानव मन का,

यह बात है मैंने अब जानी।



फिर भी मन मेरा जाने क्यों,

है भाग रहा कर्तव्यों से।

खुद को ही छलता जाता है,

कुछ अनचाहे वक्तव्यों से।



हँसता है खुश होता है कभी,

कभी व्याकुल हो जाता है दुखी।

कभी रचे ये मेला जीवन सा,

कभी रह जाये ये अकेला सा।



कर्त्तव्य मेरे जीवन का सच,

अब खुश हूँ मैं इस हलचल से।

प्रगतिपथ से मैं दूर नही,

पग मेरे जुड़े हैं धरातल से।



कुछ करके दिखलाना है मुझे,

मैं सृजन करूँगा अब हर पल।

बचपन मेरा आकाश होगा,

कर्त्तव्य मेरा होगा भूतल।

7 comments:

  1. मैं आज घिरा कर्तव्यों से,
    राहों पर बढ़ता जाता हूँ ।
    मानो अपने कर्तव्यों से,
    जीवन को गढ़ता जाता हूँ।
    ------------------
    हँसता है खुश होता है कभी,
    कभी व्याकुल हो जाता है दुखी।
    कभी रचे ये मेला जीवन सा,
    कभी रह जाये ये अकेला सा।
    --------------------

    Wah Sir, Bilkul aaj ke haalato ko bayaan kiya hai in panktiyo mein.

    1 baat meine aur gaur ki hai ki apki kavitao mein bachpan ka jikr kahi na kahi ho hi jaata hai.

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  2. Rajesh, thanks for the appreciation. कुछ हद तक आपका observation सही है। अपने बचपन से मेरा लगाव ही शायद इसका कारण है।

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  3. मंजिल की खबर न डगर पता,

    मिली राह जहाँ पग बढे वहीँ।

    मन में चिंता ना कोई व्यथा,

    जो मैंने चुना वो ही था सही।...is shandar rachna ki ye panktiyan mujhe behad bhayin..duniya me kitne log nirnyay nahi le paate hain..le lete hain to sochte hain ki ye sahi bhi hai ki nahi..aapne nirna bhi liya aaur use sahi bhi maana..mera dil kahta hai ab aapko koi rok nahi sakta..main bhi trend setter hone mein bishwas karta hoon na ki trend following mein.dher sari badhayi ke sath..mere blog se judne aaur meri hausla afjayee ke liye shukriya..a am also following your blog...kindly remove word verification to make commenting process convenient

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  4. डॉ. मिश्र, आपके ब्लॉग से जुड़ना मेरे लिए अत्यंत लाभदायक है, इससे न केवल मुझे आपकी अद्भुत रचनाओं का पाठ करने का सुअवसर मिला है; अपितु आपकी रचनाओं में निहित आपके ज्ञान से उचित मार्गदर्शन प्राप्त करने का भी सौभाग्य मिला है।

    आपकी रचना "चोट दिल पर थी तो कलम मचल गयी" इस बात का अच्छा उदहारण है। मैं 'word verification' हटा दिया है। आगे भी आप कृप्या अपना मार्गदर्शन प्रदान करते रहें।

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  5. सुन्दरतम रचना, बधाई

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें /

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  6. धन्यवाद शुक्ला जी...
    मैं आपके ब्लॉग 'मेरी कवितायेँ' से जुड़ गया हूँ । आपकी रचनाये सराहनीय हैं । आगे भी मेरा मार्ग दर्शन करते रहें ।

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  7. बहुत सुन्दर सृजन , बधाई.

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें.

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