Saturday, September 12, 2009

मेरी परछाई

On the marvelous eve of IT block function (where we were bidding farewell to IT 2001-05 batch of MPCCET – Bhilai), I dedicated these lines titled "मेरी परछाई" to three batches of Information Technology (2001-05, 2002-06 & 2003-07) of MPCCET – Bhilai.



सावन का पहला बादल,

या लहराता आँचल हो।

फूलों की भीनी खुशबु,

या आंखों का काजल हो।



झील में खिलता कमल,

या सागर की लहर हो तुम।

उगते सूरज की कोई किरण ,

या अंतहीन कोई सफर हो तुम।



बहते निरझर की झर झर ,

या नदीयों का गान हो तुम।

खेतों की हरियाली,

या निश्छल मुस्कान हो तुम।



आकाश के हो तारे,

या धरती की शान हो तुम।

आंखों में अपनापन है,

फ़िर भी लगते अनजान हो तुम।



ओंस की पहली बूंद,

या बारीश की रिमझिम हो।

ठंड की पहली बर्फ,

या गर्मी की शाम हो तुम।



जीवन का आगाज़ कभी,

कभी लगते अंजाम हो तुम।

कभी तो उगता सूरज,

कभी तो ढलती शाम हो तुम।


मनमोहन की मुरली,

या तानसेन की तान हो तुम।

धीमी होती सी धड़कन,

या जीवन का आहवान हो तुम।



कभी हलचल मेरे मन की,

कभी मेरी तन्हाई हो।

अब जा के पहचाना है,

तुम मेरी ही परछाई हो।

2 comments:

  1. awesome sirji......

    sir do u know hindi typing or something else....
    mujhe bhi apne blog par hindi me likhna hai but i don't know hindi typing...

    ReplyDelete
  2. Thanks Jijoe…

    I visited your blog and found post written in Hindi; so I guess you found the answer.

    ReplyDelete